Case #36 - 36. औरत जिसे कुछ महसूस नहीं होता था


ब्रेन्डा ने बताया कि उसकी अपनी कोई पहचान नहीं थी – वह स्वयं को भूल चुकी थी और दूसरों की पहचान के साथ अपनी पहचान को कुछ ज्यादा ही जोडती थी. उसने यह भी बताया कि वह शर्मीली थी, अपनी फोटो खिंचवाना या चकाचौंध में आना पसंद नहीं करती थी. यह संभल कर और नाजुकता से आगे बढ़ने के लक्षण थे, और शर्म के संभावित मुद्दों के बारे में जानकारी होना (अनावरण संबंधी) आवश्यक था . मैंने उसे बताया कि मैं उससे उतना ही पुछूगा जितना उसको ठीक लगे.

मैंने उससे कहा कि हम लोगों के समूह के सामने थे, और पूछा कि वह कैसा लग रहा था. उसने कहा कि वो उसको देख रहे थे, लेकिन उसको ऐसा नहीं लग रहा था कि कोई उसको देख रहा था. मैंने पूछा कि क्या वो इस कारण से था कि वे लोग उसको ज्यादा नहीं जानते थे या इसलियें कि वह नजरें चुरा रही थी. उसने कहा, दोनों ही. इसने मुझे संबंधो की क्रियाशीलता का ढांचा बनाने में सहायता की. इसलियें, मैं दोबारा उसकी तरफ मुखातिब हुआ और उसको देखने लगा, लेकिन वो मुझसे भी नजर चुरा रही थी. उसने कहा, हाँ. वह सभी के साथ ऐसा ही करती थी.

निस्संदेह यह संबंधों में रुकावट लाता था – देखे जाने कि इच्छा का उसका एक पक्ष, लेकिन दूसरा पक्ष इसकी इजाजत नहीं देता था. यह एक चेतावनी थी कि मुझे संभल कर आगे बढ़ना था, नहीं तो मैं खुद परेशान हो जाऊँगा और इस चक्रव्यूह में फंस जाऊँगा. इसलिये, उससे ज्यादा पूछताछ करने के बजाय मैंने उसे वही चीजें कहीं जो उसने अपने बारे में मुझे बताई थीं – अपनी व्यक्तिगत जानकारी जो उसने मुझसे सांझा कि थी. मैंने उसे वो भी बताया जो मैंने देखा था, जैसे कि जो कपडे उसने पहन रखे थे उनका रंग.

इसने हमारे बीच उससे बिना कुछ और पूछे एक भूमिका तैयार की, जिससे यह पता चलता था कि वह जो कुछ मुझे उपलब्ध करा रही थी या बता रही थी, मैं उसे ग्रहण कर रहा था. शर्म के मामलों में यह महत्वपूर्ण है कि अपनी भी कोई बात बताई जाये, बजाय इसके कि दूसरे व्यक्ति से कुछ ज्यादा ही पूछा जाये. तब भी, उसकी आँखें भावहीन थीं और उसने बताया कि वह बह रही थी. इसका अर्थ था कि सम्पर्क बहुत अधिक था. मैंने उससे पूछा कि वह किस ओर बह रही थी....उसने कहा कि अनगिनत संसारों में, पिछले जीवन में.

इसका ये अर्थ था कि सम्पर्क टूट रहा था, इसलिए सुरक्षा का मुद्दा यहाँ मुख्य था. मैंने ये प्रस्ताव दिया कि वो वास्तव में स्वप्निल अवस्था में जा सकती थी, और मैं भी ऐसा ही कर सकता था, और मैं ग्रुप में सभी को स्वप्निल अवस्था में आने के लिए कहूंगा और हम सब सपने में एक साथ बैठ सकते थे. इस प्रस्ताव ने उसके आवेग को बढ़ाया, और उस तरफ जाने के लिए और प्रोत्साहित किया. गेस्टाल्ट में इसे मिथ्याभास बदलाब का सिद्धांत कहा जाता है – जो कुछ है उसी में प्रवेश करना. उसने कहा, उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा था. दूसरे शब्दों में पूरी तरह से उसका सम्पर्क खत्म हो चुका था. इस स्थान पर एक विशेष तरह का सम्पर्क ही उपलब्ध है.

मैंने उससे पूछा कि सुरक्षित महसूस करने के लिए उसे किस तरह के समर्थन कि आवयश्कता थी. उसने कहा मैं नहीं चाहती कि मुझे कोई देखे. इसलिये, मैंने उससे कहा कि मैं उसकी तरफ न देख कर दूसरी तरफ देखूगा, लेकिन साथ ही साथ मैंने उसे अपनी उदासी के बारे में भी बताया – कि क्योकि मैं उसकी तरफ विल्कुल नहीं देखूंगा, और देखने की कोशिश भी नहीं करूंगा, उसका छुपना सम्पूर्ण होगा. मैंने उससे कहा कि मुझे उसकी तरफ खिंचाव महसूस हो रहा था, लेकिन उस तक पहुँचने का मेरे पास कोई रास्ता नहीं था. ब्रेन्डा ने मेरी तरफ देखा और कहा कि उसे सहायता की आवश्यकता नहीं थी. यह रहस्योदघाटन था जो यह बताता था कि मुझे आगे कैसे बढ़ना था.

मैंने उसे एक प्रयोग का प्रस्ताव दिया – वो अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर रखे – एक हाथ पीछे धकेलते हुए और दूसरा हाथ खुला हुआ जो सहायता लेने के लिए तैयार था. हमने ऐसा ही किया और फिर वो मेरी सहायता ले पाई – मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ उसके खुले हाथ कि तरफ बढ़ाया और उसे पकड लिया. फिर उसने कहा कि कोई ऐसी शक्ति है जो उसे महसूस न करने के लिए कहती है. मैंने किसी को अपने सामने उस शक्ति को प्रतीक के रूप में खड़े होने के लिए कहा. वो नहीं जानना चाहती थी कि वो नुमाइंदा किस चीज के लिए था.

इसलिए मैंने उसको उस शक्ति से एक व्यक्तव्य कहने के लिए कहा. उसने कहा 'मैं तुम्हारी बात तब सुनूंगी जब वह मेरे लिए किसी काम की हो, अन्यथा मैं अपनी सहायता खुद कर लूँगी'. यह व्यक्तव्य विभेदन और एकीकरण का था. वह अब महसूस कर सकती थी, सहायता ले सकती थी, संबंध बना सकती थी, उस जगह पर देखी जा सकती थी और अब उसे विकल्प तय करने का ज्ञान भी था. यह काम बहुत आहिस्ता था, मुझे हर समय उसकी सीमाओं का मान रखना था, ज्यादा विस्तार से नहीं पूछना था, वो भी जो वह महसूस कर रही थी...फिर भी हार नहीं माननी थी. सामान्यतया, लोग उसी को प्रतिक्रिया दिखाते हैं जो ऐसी गोपनीयता की सीमाएं स्थापित करते हैं – या तो पीछे हट कर या फिर असंबद्ध तरीके से मिल कर, या फिर उस व्यक्ति में रूचि ले कर या द्याभावना से काबू पा कर. इसमें तटस्थ उपस्थिति, काफी स्नेह, लेकिन बहुत अधिक नहीं, के साथ – इसे अनुकूलन कहते हैं, और यह एक मूलभूत निपुणता है.



 प्रस्तुतकर्ता  Steve Vinay Gunther