Case #29 - 29 गुस्से ाली छोटी सी बची को पालना


कैथी अपने पिता से नाराजगी का मुद्दा ले कर आई । मैंने पूछा उसे किस बात का गुस्सा था । उसने बताया कि जब वह 4 वर्ष की थी उसके पिता ने उसकी माँ को तलाक दे दिया था । मैंने उसकी पृष्ठभूमि की प्रकृति को परखा । वह बीस साल पहले हुआ था और तब से वह अपने पिता से केवल 20 बार मिली थी । वह उसके बारे में बहुत कम जानती थी । उसे लगता था कि उसकी माँ पीड़ित व्यक्ति थी – उसके पिता का प्रेम-प्रसंग था, और फिर उसने दोबारा शादी कर ली थी ।

मउसने अपने व्यस्क जीवन में उससे मिलने की कोई कोशिश नहीं की थी । मैंने पूछा क्यों तो उसने जवाब दिया कि पिछली बार जब वह अपनी दूसरी शादी से अपनी बेटी को साथ ले कर आया था तो उसका सौतेली बहन को प्यार करते देख कर मेरी को बहुत जलन महसूस हुई थी । मैंने उससे कहा कि मैं उसके माता-पिता के तलाक के मुद्दे पर, या उसके बारे में उसके गुस्से पर, काम नहीं करूँगा (क्योंकि वास्तव में यह उसके मुद्दों का केन्द्रबिंदु नहीं था) । इसके बजाय मैं उसके साथ केवल एक व्यस्क की तरह ही काम करना चाहता था और जानना चाहता कि वर्तमान समय में वह क्या करना चाहती थी । वो कुछ हिचकिचा रही थी, लेकिन मेरी सीमाएँ स्पष्ट थीँ ।

मैंने उसको अपने तलाक के बारे में एक कहानी सुनाई, और अपनी सबसे बड़ी बेटी, जब वह बड़ी हो चुकी थी, के साथ हुई बातचीत और जो गल्तफहमियाँ उसने पाल रखी थीं के बारे में बताया । मैंने उससे कहा कि मैं उसकी अपने पिता के साथ हुई बातचीत को जानने के लिये तैयार था परन्तु उसके साथ किसी असहाय, पीड़ित या अशक्त भूमिका में रहने के लिये तैयार नहीं था ।

उसे अपनी माँ की कहानियाँ विरासत में मिली थीं और वह उन्ही के रंग में रंगी हुई थी । एक व्यस्क होते हुए वह अपने विकल्पों का इस्तेमाल कर सकती थी और सीधे अपने पिता से उसकी तरफ की बात का पता लगा सकती थी । उसने अभी तक ऐसा नहीं किया था, इसलिये बजाय इसके कि मैं उसके भूतकाल को खोदूँ , मेरा विचार भविष्य की ओर धयान देने का था । इसके अलावा, जब हम इसके बारे में बात करते थे तो मेरी की आवाज और हाव-भाव छोटी बच्ची की तरह हो जाते थे । मैंने उससे कहा कि मैं समझता था, और मुझे उस दया आ रही थी, कि उसने अपने पिता का बहुत कुछ खोया था, लेकिन अब वो बीती बात हो चुकी थी और किसी प्रकार की चिकित्सा या अपने पिता के साथ बातचीत उन दिनों को वापिस नहीं ला सकती थी ।

जजैसे भी हो, हमें इसी त्रासदी के साथ रहना था और यहीं से उसके लिये उपाय ढूँढना था । यह बहुत मुश्किल था लेकिन कुछ और करने से उसे उसी असहाय स्थिति में ही रहने के लिये ही मदद करते और उकसाते और वह हमेशा उस चीज को पाने की इच्छुक रहती जिसे उसने खो दिया था । कभी-कभी समानुभूति दिखाने से लोगों की सहायता हो जाती है परन्तु बाकी समय उन्हे एक स्पष्ट सीमा चाहिये होती है और हमेशा पीछे मुड़ कर देखने के बजाय आगे बढ़ने का रास्ता चाहिये होता है । उसके अंदर की छोटी बच्ची के पास कोई विकल्प नहीं था, अपने पिता की तरफ जाने की हिम्मत नहीं थी ।

उसने बताया कि अगर उसने अपने पिता को बचपन में देखा होता तो उसे किस तरह से मारती । स्पष्ट रूप से वो गुस्सा थी और मैं इसे सामान्य स्तर पर ले कर आया । लेकिन उसके बारे में बताने के लिये उसे कोई और रास्ता नहीं मिला था, वह अभी भी वही छोटी क्रोधी बच्ची थी । इसलिये, मैंने एक प्रयोग का सुझाव दिया: कमरे में उस स्थान से शुरू करके, जिसे वह अपनी माँ का स्थान समझती थी, कमरे में दूसरी तरफ अपने पिता की तरफ जाये । शायद अपने पिता के साथ बातचीत करने के लिये या फिर शायद उसके साथ खड़े होने के लिये ।

मउसे यह सुझाव बड़ा चुनौतीपूर्ण लगा और वह बहुत डर गई थी । मैंने उसको प्रोत्साहित करने के लिये सब कुछ किया, लेकिन उसे विकल्प भी दिये । मैंने उसे बार-बार याद दिलाया कि वह 24 वर्ष की थी । मैंने उससे छोटी बच्ची की आवाज को त्यागने के लिये कहा, अपनी कमर को झुकाने के बजाय सीधे रखने के लिये कहा (उसने अपनी कमर में लगातार दर्द की शिकायत बताई थी) और उस दशा से व्यस्कता और दूसरे विकल्पों को आजमाने के लिये कहा । धीरे-धीरे वह प्रयोग के लिये मान गई । वह एक समय में एक कदम आगे बढ़ी, उसे हर कदम पर सहारे की आवश्यकता होती थी जिससे वह गिर न जाय । अंतत: वह अपने पिता के स्थान पर पहुँची, और मैंने किसी को उसके पिता का किरदार निभाने के लिये कहा ।

उसे अपने पिता से बात करने में बहुत मुश्किल हो रही थी । इसलिये, मैंने उससे पूछा कि वह क्या महसूस कर रही थी, और उसे उन शब्दों में कहे जिनमें वह कह सकती थी । मैंने यह उसकी आधा दर्जन भावनाओं के लिये किया, इसलिये उसके पास कहने के लिये बहुत कुछ था । उसे अपने शब्दों को कहने के लिये और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता थी । वास्तव में वह छोटी-छोटी साँस की तेज आवाजें निकाल रही थी, जिन्हे पहचानने पर पता चला कि उनमें उसकी सौतेली बहन की तरफ ध्यान देने पर शिकायतें थीं । वह अपने पिता से प्रश्न पूछना चाहती थी, लेकिन मैंने उसे केवल अपनी बात कहने के लिये कहा । मैंने उसे सवालों की चालबाजी के बारे में बताया और उसे उन कारणों पर ले कर आया जिनसे वह अपने पिता के पास जाना चाहती थी ।

अंत में, उसने अपने पिता से बात की । उसे बताया कि वह उससे नाराज, चोट खाई हुई, थी और यह भी कि उसे उसको देख खुशी हुई थी । ज्यादातर उसने अपनी परेशानी के बारे में और अपने डर के बारे में बताया । प्रतिनिधि की प्रतिक्रिया थी कि उसे उस को देख कर खुशी हुई थी; और इसकी उसे उम्मीद नहीं थी ।

सारी प्रक्रिया उसके लिये बहुत मुश्किल थी । मुझे प्रयोग को आसान बनाने के लिये बहुत कुछ करना पड़ा, जैसे कि यह एक चिकित्सा समूह है, वह उसके असली माता-पिता नहीं थे, और वह केवल एक लकड़ी के फर्श पर चल रही थी, इससे ज्यादा कुछ नहीं ।इसने उसकी भावुकता को थोड़ा कम किया । मैं हरेक कदम पर उसके साथ रहा, उसे सिखाते हुए, सहारा देते हुए और उसे अपने व्यस्क रूप में बने रहने के लिये चुनौती देते हुए ।

यह गेस्टाल्ट के 'सुरक्षित आपातकाल' का एक उदाहरण था, जिसमें हम उस सीमा में जाते हैं जो सामान्यतया बहुत मुश्किल होती है, फिर भी जितना भी सहारा दे पायें उससे यह करना आवश्यक है । यह व्यक्ति को एक नया अनुभव लेने देता है । परन्तु ऐसे प्रयोग निर्देशात्मक नही होते और आसामियों को नये 'चाहनाओं' में इन्हे इस्तेमाल न करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, लेकिन इसके बजाय इन्हे जागरूकता लाने और विकल्प खोजने के रूप में देखने के लिये कहा जाता है ।



 प्रस्तुतकर्ता  Steve Vinay Gunther