Case #15 - 15 वैंग का मामला, कमजोर बोध, और झपकी


वैंग एक प्रतिभाशाली युवक था । मैं एक तार्किक तरीके का दृष्टिकोण दर्शाना चाहता था । इसलिये, मैंने उसकी टी-शर्ट को देखने से शुरूआत की जो भूरे रंग की बहुत ही उबाऊ थी । उसने बताया कि उसने इसको चुना क्योंकि उसमें रंगों को पहचानने की क्षमता नहीं है, और उसे यह हरी लगती है । उसने दर-असल अपने रंग बोध के संबंध में 'कमजोर' शब्द का इस्तेमाल किया । उसने आगे बताया कि उसका संवेदी तथा अन्तर्वैक्तिक बोध सामन्यतया 'कमजोर' है । इससे उसकी महिला-मित्र के साथ कठिनाईयाँ होती हैं ।

मैंने इसमें अपनी बात कही और अपनी कमजोर बोध क्षमताओं के बारे में बताया । मेरे द्वारा अपनी व्यक्तिगत बातें बताने से उसको अपनी बातें आगे खुल कर कहने का आधार मिलता है । वह जानना चाहता था कि इसे कैसे बदले या ठीक करे ।

मैंने उसे गेस्टाल्ट के दृष्टिकोण से समझाया कि हमें ठीक करने में कोई रुचि नहीं है, परन्तु जो है उसे पूरे तौर करने में, हरेक व्यक्ति की शैली की मजबूतियों और कमियों को समझने में है । और फिर शायद संभावनों की सीमा को बढ़ाने में ।

मइसलिये मैंने उसे उन विशेष उदाहरणों को बताने के लिये कहा जहाँ उसकी शैली उसके काम आती है । वो इसके बारे में कुछ कहता है, और फिर 'लेकिन' कहता है…इसलिये मैंने उसे अपना मूल्याँकन करने से रोक दिया और फिर अपने उन उदाहरणों को ये मूल्यांकन करते हुए बताया कि वो कहाँ पर मेरे काम आते हैं । गेस्टाल्ट के तरीके में इलाज करने वाला अक्सर स्वयँ को उदाहरण के तौर पर पेश करता हैं ।

फिर मैंने उससे उसकी कमियों के बारे में पूछा । उसने एक साधारण सा प्रत्युत्तर दिया । इसलिये मैंने उससे किसी विशेष उदाहरण को बताने के लिये कहा । गेस्टाल्ट में हम मुद्दों को विशेष तरीके से इतना मथ लेते हैं कि हम उनके साथ काम कर सकें । उसने उदाहरण दिया कि उसकी महिला मित्र उससे प्रशंसा और कोमल शब्द चाहती है, और उसे ये लगता है कि उसने उसे पहले ही ये चीजें दे दी हैं । इसलिये वो इसका प्रतिरोध करता है । उसे इस बात को समझने में बड़ी मुश्किल होती है कि वह क्या चाहती है ।

मैंने उसको उसकी आँख झपकने के बारे में बताया, जो मैंने देखी थी । यह कुछ असामान्य थी – अक्सर जल्दी-जल्दी झपकती थी और कभी-कभी तो बड़ी उल्लेखनीय होती थी । उसको इस बारे में कुछ पता नहीं था कि वह ऐसा करता था, लेकिन उसके आँखें झपकाने के अनुभव से उसकी जानकारी कराने ने उसे बिल्कुल कोरा कर दिया । इसलिये मैंने उसे समूह में कुछ लोगों की तरफ देखने को कहा और कहा कि देखे कि उसके आँखें झपकाने के साथ क्या होता होता है । यह बहुत मुश्किल था, वह जल्दी से गया परन्तु कुछ देख नहीं पाया ।

इसलिये मैंने उसे अपनी ओर देखने और धयान देने के लिये कहा । उसने सीधे-सीधे अपना मूल्याँकन करना शुरू कर दिया, मैंने उसे केवल स्वयँ पर और अपने अनुभव पर कैमरे की तरह धयान देने के लिये कहा । यह उसके लिये मुश्किल था और उसे कोई ज्यादा जानकारी नहीं थी । लेकिन उस वक्त उसने आँखें धीरे से झपकाईं । मैंने पूछा उस वक्त क्या हुआ था ।

उसने कहा वह आँख मिलाना नहीं चाहता था । गेस्टाल्ट में हम घटना पर धयान देते हैं, खासकर वो मोड़ जहाँ चीजें बदलती हैं और उस वक्त के हुए अनुभव की जाँच करते हैं । हमने टालने के बारे में बात की और मैंने उसे अपने पिता के आने के दौरान का अपना उदाहरण दिया । फिर से, मैंने अपने बारे में जो खुलासा किया था, उसने आगे बातचीत करने का आधार बनाया । उसने कुछ भावुक हो कर प्रतिक्रिया व्यक्त की – उसको भी अपने पिता से बातचीत करने में मुश्किलें आती थी । हमारे पास उसमें जाने का समय नहीं था, लेकिन इसको आगे के कार्य के लिये चिन्हित कर लिया गया ।

पहले ही बहुत कुछ करना था, इसलिये हमने इस सत्र को समाप्त कर दिया । उसने जो कुछ जाना था उसका अभ्यास करने के लिये उसे एक विशेष मोड़ ला कर छोड़ दिया गया, जैसा कि वह शुरूआत करने से पहले था । वह चुस्त था, और हमेशा सोचने लगता था । इसलिये, आँखें झपकाने ने उसे अपनी भावनाओं से संबंध बनाने के लिये एक मार्कर दिया, विशेषतया तब जब वह देखता था कि चीजें हद से बाहर जा रही हैं । उसकी दूसरों के साथ सामंजस्य बैठाने की क्षमता तब तक काम नहीं कर सकती थी जब तक कि उसकी स्वयँ से सामंजस्य बैठाने की क्षमता का विकास न किया जाये । और आँखें झपकाने से जो अंतराल मिलता था उससे कुछ हद तक उसकी 'कमजोर' बोध शक्ति पर नियंत्रण रहता था ।



 प्रस्तुतकर्ता  Steve Vinay Gunther